अयि! भुवन मन मोहनी
निर्मल सूर्य करोज्ज्वल धरणी
जनक-जननी-जननी।। अयि...
अयि! नली सिंधु जल धौत चरण तल
अनिल विकंपित श्यामल अंचल
अंबर चुंबित भाल हिमाचल
अयि! शुभ्र तुषार किरीटिनी।। अयि...
प्रथम प्रभात उदय तव गगने
प्रथम साम रव तव तपोवने
प्रथम प्रचारित तव नव भुवने
कत वेद काव्य काहिनी।। अयि...
चिर कल्याणमयी तुमि मां धन्य
देश-विदेश वितरिछ अन्न
जाह्नवी, यमुना विगलित करुणा
पुन्य पीयूष स्तन्य पायिनी।। अयि...
अयि! भुवन मन मोहिनी।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर - Rabindranath Thakur,
रवीन्द्रनाथ टैगोर - Rabindranath tagore,
#poemgazalshayari.in
Mere पास संगीत राग दर्शन ,गंधर्व महाविद्यालय प्रयाग से प्रकाशित पुस्तक है l इसमे छापी कविता के साथ कुछ शब्दों का भेद है l
ReplyDeleteधरणि ...धारिणी [आपका...मेरा]
जनन....जनक
अयि(नील...) ....
अयि(शुभृ)......
नव.. ..बन भवन
विचित्र....वितरिछ
तुमि) मां....तुमि.....
महोत्सव..पीयूष
पायनि....वाहिनी
कृपया यह भेद क्यों है स्पष्ट करें...