ओ साँस! समय जो कुछ लावे - o saans! samay jo kuchh laave -sachchidanand hiranand vatsyayan "agay"- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" #Poem Gazal Shayari


ओ साँस! समय जो कुछ लावे
सब सह जाता है:
दिन, पल, छिन-इनकी झाँझर में जीवन
कहा-अनकहा रह जाता है।
बहू हो गयी ओझल:

नदी पार के दोपहरी सन्नाटे ने फिर
बढ़ कर इस कछार की कौली भर ली:
वेणी आँचल से रेती पर
झरती बूँदों की लहर-डोर थामे, ओ मन!
तू बढ़ता कहाँ जाएगा?

sachchidanand hiranand vatsyayan "agay"- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय"

#Poem Gazal Shayari

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