झर गये तुम्हारे पात jhar gaye tumhaare paat sachchidanand hiranand vatsyayan agay सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

झर गये तुम्हारे पात - सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय"


झर गये तुम्हारे पात
मेरी आशा नहीं झरी।
जर गये तुम्हारे दिये अंग
मेरी ही पीड़ा नहीं जरी।

मर गयी तुम्हारी सिरजी
जीवन-रसना-शक्ति-जिजीविषा मेरी नहीं मरी।
टर गये मेरे उद्यम, साहस-कर्म,
तुम्हारी करुणा नहीं टरी!

sachchidanand hiranand vatsyayan agay- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय


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