जीना अपने ही में - jeena apane hee mein -Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत #Poem Gazal Shayari
जीना अपने ही में
एक महान कर्म है
जीने का हो सदुपयोग
यह मनुज धर्म है
अपने ही में रहना
एक प्रबुद्ध कला है
जग के हित रहने में
सबका सहज भला है
जग का प्यार मिले
जन्मों के पुण्य चाहिए
जग जीवन को
प्रेम सिन्धु में डूब थाहिए
ज्ञानी बनकर
मत नीरस उपदेश दीजिए
लोक कर्म भव सत्य
प्रथम सत्कर्म कीजिए
Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत
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