अगणित उन्मादों के क्षण हैं- aganit unmaadon ke kshan hain,- हरिवंशराय बच्चन - harivansharaay bachchan
अगणित उन्मादों के क्षण हैं,
अगणित अवसादों के क्षण हैं,
रजनी की सूनी घड़ियों को किन-किन से आबाद करूँ मैं!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
याद सुखों की आँसू लाती,
दुख की, दिल भारी कर जाती,
दोष किसे दूँ जब अपने से, अपने दिन बर्बाद करूँ मैं!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
दोनो करके पछताता हूँ,
सोच नहीं, पर मैं पाता हूँ,
सुधियों के बंधन से कैसे अपने को आबाद करूं मैं!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
- हरिवंशराय बच्चन - harivansharaay bachchan
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