जाति हुती सखी गोहन में, मन मोहन को, लखिकै ललचानो - Jati huti sakhi gohan mein, man mohan ko, lakhikai lalchano -Rahim- abdul rahim khan-i-khana रहीम- अब्दुल रहिम खान-ए-ख़ाना
जाति हुती सखी गोहन में, मन मोहन को, लखिकै ललचानो।
नागर नारि नई ब्रज की, उनहूँ नँदलाल को रीझिबो जानो॥
जाति भई फिरि कै चितई, तब भाव ’रहीम’ यहै उर आनो।
ज्यों कमनैत दमानक में फिरि तीरि सों मारि लै जात निसानो॥
Rahim- abdul rahim khan-i-khana
रहीम- अब्दुल रहिम खान-ए-ख़ाना
Comments
Post a Comment