एक चैत की पूनम थी -- ek chait kee poonam thee --- अमृता प्रीतम - Amrita Pritam #www.poemgazalshayari.in
एक चैत की पूनम थी
कि दूधिया श्वेत मेरे इश्क़ का घोड़ा
देश और विदेश में विचरने चला...
सारा शरीर सच-सा श्वेत
और श्यामकर्ण विरही रंग के...
एक स्वर्णपत्र उसके मस्तक पर
'यह दिग्विजय घोड़ा –
कोई सबल है तो इसे पकड़े और जीते'
और जैसे इस यज्ञ का एक नियम है
वह जहाँ भी ठहरा
मैंने गीत दान किये
और कई जगह हवन रचा
सो जो भी जीतने को आया वह हारा।
आज उमर की अवधि चुक गई है
यह सही-सलामत मेरे पास लौटा है,
पर कैसी अनहोनी –
कि पुण्य की इच्छा नहीं,
न फल की लालसा बाक़ी
यह दूधिया श्वेत मेरे इश्क़ का घोड़ा
मारा नहीं जाता - मारा नहीं जाता
बस सही-सलामत रहे,
पूरा रहे!
मेरा अश्वमेध यज्ञ अधूरा है,
अधूरा रहे!
- अमृता प्रीतम - Amrita Pritam
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