दिख रही सुर्ख़-सुर्ख़ शाम - dikh rahee surkh-surkh shaam -- जयप्रकाश त्रिपाठी- Jayprakash Tripathi #www.poemgazalshayari.in ||Poem|Gazal|Shaayari|Hindi Kavita|Shayari|Love||

दिख रही सुर्ख़-सुर्ख़ शाम
कितनी क़ातिल है,
वो बदनसीब
आँसुओं की मौत मरता है।

राह पश्चिम की हो,
पूरब की
कहीं की भी हो
दिल से
वह देश पर मचलता है।

कुछ घड़ी
ले लो इसे, ले लो
अपने दामन में
आओ
ढल जाओ
उसमें,
जाम जैसे ढलता है।

आओ, आ जाओ
सँवर जाओ
समन्दर कर दूँ
झील में कोई
ज्वालामुखी जैसे जलता है।

अपने महताब का
वह
कितना इन्तज़ार करे
जो कि
हर वक़्त उसकी बात से बहलता है।

जब भी
वह रुकता है,
अपने आप ही
रुक जाता है
जब चले
तो सबके साथ साथ चलता है।

चाहता हूँ कि
उसे
उम्र मेरी लग जाए,
हसीन ख़्वाब-सा
वह
मेरे दिल में पलता है।

- जयप्रकाश त्रिपाठी- Jayprakash Tripathi

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