मेरे भीतर समाधिस्थ हैं
सत्रह के नारे
सैंतालिस की त्रासदी
पचहत्तर की चुप्पियां
और नब्बे के उदार प्रहार
घूंघट काढ़े कुछ औरतें आती हैं
और मेरे आगे दिया बाल जाती हैं
गहरी नींद में डूबा एक समाज
जागने का स्वप्न देखते हुए
कुनमुनाता है
गरमी की दुपहरी बिजली कट गई है
एक विचारधारा पैताने बैठ
उसे पंखा झलती है
न नींद टूटती है न भरम टूटते हैं
- गीत चतुर्वेदी - Geet Chaturvedi
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