जब नींद के निचाट अँधेरे में - jab neend ke nichaat andhere mein -- उत्पल बैनर्जी - Utpal Banerjee #www.poemgazalshayari.in

जब नींद के निचाट अँधेरे में
सेंध लगा रहे थे सपने
और बच्चों की हँसी से गुदगुदा उठी थी
मन की देह,
हम जाने किन षड़यंत्रों की ओट में बैठे
मंत्रणा करते रहे!
व्यंजना के लुब्ध पथ पर
क्रियापदों के झुण्ड और धूल भरे रूपकों से बचते
जब उभर रहे थे दीप्त विचार
तब हम कविता के गेस्ट-हाउस में
पान-पात्र पर भिनभिनाती मक्खियाँ उड़ा रहे थे!
जब मशालें लेकर चलने का वक़्त आया
वक़्त आया रास्ता तय करने का
जब लपटों और धुएँ से भर गए रास्ते
हमने कहा -- हमें घर जाने दो
हमें दंगों पर कविता लिखनी है!


 - उत्पल बैनर्जी - Utpal Banerjee
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