शगुफ्तगी का लताफ़त का शाहकार हो तुम - shaguphtagee ka lataafat ka shaahakaar ho tum -- कैफ़ी आज़मी - Kaifi Azmi #poemgazalshayari.in
शगुफ्तगी का लताफ़त का शाहकार हो तुम,
फ़क़त बहार नहीं हासिल-ऐ-बहार हो तुम,
जो इक फूल में है क़ैद वो गुलिस्तान हो,
जो इक कली में है पिन्हाँ वो लाला-ज़ार हो तुम.
हलावतों की तमन्ना मलाहतों की मुराद,
ग़रूर कलियों का कलियों का इंकिसार हो तुम,
जिसे तरंग में फ़ितरत ने गुनगुनाया है,
वो भैरवी हो, वो दीपक हो, वो मल्हार हो तुम.
तुम्हारे जिस्म में ख्वाबीदा हैं हज़ारों राग,
निगाह छेड़ती है जिसको वो सितार हो तुम,
जिसे उठा न सकी जुस्तजू वो मोती हो,
जिसे न गूँथ सकी आरज़ू वो हार हो तुम.
जिसे न बूझ सका इश्क़ वो पहेली हो,
जिसे समझ न सका प्यार वो प्यार हो तुम
खुदा करे किसी दामन में जज़्ब हो न सके
ये मेरे अश्क-ऐ-हसीं जिन से आशकार हो तुम.
- कैफ़ी आज़मी - Kaifi Azmi
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