बस इक झिझक है यही हाल-ए-दिल सुनाने में - bas ik jhijhak hai yahee haal-e-dil sunaane mein -- कैफ़ी आज़मी - Kaifi Azmi #poemgazalshayari.in

बस इक झिझक है यही हाल-ए-दिल सुनाने में
कि तेरा ज़िक्र भी आयेगा इस फ़साने में

बरस पड़ी थी जो रुख़ से नक़ाब उठाने में
वो चाँदनी है अभी तक मेरे ग़रीब-ख़ाने में

इसी में इश्क़ की क़िस्मत बदल भी सकती थी
जो वक़्त बीत गया मुझ को आज़माने में

ये कह के टूट पड़ा शाख़-ए-गुल से आख़िरी फूल
अब और देर है कितनी बहार आने में



- कैफ़ी आज़मी - Kaifi Azmi


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