शय्या ग्रस्त रहा मैं दो दिन, फूलदान में हँसमुख
चंद्र मल्लिका के फूलों को रहा देखता सन्मुख।
गुलदावदी कहूँ,—कोमलता की सीमा ये कोमल!
शैशव स्मिति इनमें जीवन की भरी स्वच्छ, सद्योज्वल!
पुंज पुंज उल्लास, लीन लावण्य राशि में अपने,
मृदु पंखड़ियों के पलकों पर देख रहा हो सपने!
उज्वल सूरज का प्रकाश, ज्योत्स्ना भी उज्वल, शीतल,
उज्वल सौरभ-अनिल, और उज्वल निर्मल सरसी जल;
इन फूलों की उज्वलता छू लेती अंतर के स्तर,
मधुर अवयवों में बँध वह ज्यों हो आगई निकटतर!
मृदुल दलों के अंगजाल से फूट त्वचा-कोमल सुख
सहृदय मानवीय स्पर्शों से हर लेता मन का दुख!
तृण तृण में औ’ निखिल प्रकृति में जीवन की है क्षमता,
पर मानव का हृदय लुभाती मानव करुणा ममता!
Sumitra Nandan Pant - सुमित्रानंदन पंत
#Poem Gazal Shayari
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