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Wednesday, March 11, 2020

खिड़की एकाएक खुली - khidakee ekaek khulee -sachchidanand hiranand vatsyayan "agay"- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" #Poem Gazal Shayari

खिड़की एकाएक खुली,
बुझ गया दीप झोंके से,
हो गया बन्द वह ग्रन्थ
जिसे हम रात-रात

घोखते रहे,
पर खुला क्षितिज, पौ फटी,
प्रात निकला सूरज, जो सारे
अन्धकार को सोख गया।

धरती प्रकाश-आप्लावित!
हम मुक्त-कंठ मुक्त-हृदय
मुग्ध गा उठे
बिना मौन को भंग किये।

कौन हम?
उसी सूर्य के दूत
अनवरत धावित।

sachchidanand hiranand vatsyayan "agay"- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय"

#Poem Gazal Shayari

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