दृष्टि-पथ से तुम जाते हो जब - drshti-path se tum jaate ho jab -sachchidanand hiranand vatsyayan "agay"- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" #Poem Gazal Shayari #Poem_Gazal_Shayari

दृष्टि-पथ से तुम जाते हो जब।

तब ललाट की कुंचित अलकों-
तेरे ढरकीले आँचल को,
तेरे पावन-चरण कमल को,
छू कर धन्य-भाग अपने को लोग मानते हैं सब के सब।

मैं तो केवल तेरे पथ से
उड़ती रज की ढेरी भर के,
चूम-चूम कर संचय कर के
रख भर लेता हूँ मरकत-सा मैं अन्तर के कोषों में तब।

पागल झंझा के प्रहार सा,
सान्ध्य-रश्मियों के विहार-सा,
सब कुछ ही यह चला जाएगा-
इसी धूलि में अन्तिम आश्रय मर कर भी मैं पाऊँगा दब !

दृष्टि-पथ से तुम जाते हो जब।



sachchidanand hiranand vatsyayan "agay"- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय"

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