मैं अपने घर में ही अजनबी हो गया हूँ आ कर - main apane ghar mein hee ajanabee ho gaya hoon aa kar - गुलजार - Gulzar -Poem Gazal Shayari
मैं अपने घर में ही अजनबी हो गया हूँ आ कर
मुझे यहाँ देखकर मेरी रूह डर गई है
सहम के सब आरज़ुएँ कोनों में जा छुपी हैं
लवें बुझा दी हैंअपने चेहरों की, हसरतों ने
कि शौक़ पहचनता ही नहीं
मुरादें दहलीज़ ही पे सर रख के मर गई हैं
मैं किस वतन की तलाश में यूँ चला था घर से
कि अपने घर में भी अजनबी हो गया हूँ आ कर
गुलजार - Gulzar
-Poem Gazal Shayari
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