खेलूँगी कभी न होली - kheloongee kabhee na holee -- सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" - Suryakant Tripathi "Nirala" - Poem_Gazal_Shayari
खेलूँगी कभी न होली
उससे जो नहीं हमजोली ।
यह आँख नहीं कुछ बोली,
यह हुई श्याम की तोली,
ऐसी भी रही ठठोली,
गाढ़े रेशम की चोली-
अपने से अपनी धो लो,
अपना घूँघट तुम खोलो,
अपनी ही बातें बोलो,
मैं बसी पराई टोली ।
जिनसे होगा कुछ नाता,
उनसे रह लेगा माथा,
उनसे हैं जोडूँ-जाता,
मैं मोल दूसरे मोली
- सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" - Suryakant Tripathi "Nirala"
- Poem_Gazal_Shayari
Comments
Post a Comment