आप बेवजह परेशान-सी क्यों हैं मादाम - aap bevajah pareshaan-see kyon hain maadaam - -साहिर लुधियानवी - saahir ludhiyaanavee

आप बेवजह परेशान-सी क्यों हैं मादाम?
लोग कहते हैं तो फिर ठीक ही कहते होँगे
मेरे अहबाब ने तहज़ीब न सीखी होगी
मेरे माहौल में इन्सान न रहते होँगे

नूर-ए-सरमाया से है रू-ए-तमद्दुन की जिला[1]
हम जहाँ हैं वहाँ तहज़ीब नहीं पल सकती
मुफ़लिसी हिस्स-ए-लताफ़त[2] को मिटा देती है
भूख आदाब के साँचे में नहीं ढल सकती

लोग कहते हैं तो, लोगों पे ताज्जुब कैसा
सच तो कहते हैं कि, नादारों की इज़्ज़त कैसी
लोग कहते हैं - मगर आप अभी तक चुप हैं
आप भी कहिए ग़रीबो में शराफ़त कैसी

नेक मादाम ! बहुत जल्द वो दौर आयेगा
जब हमें ज़ीस्त[3] के अदवार परखने होंगे
अपनी ज़िल्लत की क़सम, आपकी अज़मत की क़सम
हमको ताज़ीम[4] के मे'आर[5] परखने होंगे

हम ने हर दौर में तज़लील[6] सही है लेकिन
हम ने हर दौर के चेहरे को ज़िआ[7] बक़्शी है
हम ने हर दौर में मेहनत के सितम झेले हैं
हम ने हर दौर के हाथों को हिना बक़्शी है

लेकिन इन तल्ख मुबाहिस[8] से भला क्या हासिल?
लोग कहते हैं तो फिर ठीक ही कहते होँगे
मेरे एहबाब ने तहज़ीब न सीखी होगी
मेरे माहौल में इन्सान न रहते होँगे

वजह बेरंगी-ए-गुलज़ार कहूँ या न कहूँ
कौन है कितना गुनहगार कहूँ या न कहूँ

-साहिर लुधियानवी - saahir ludhiyaanavee

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