अना का बोझ कभी जिस्म से उतार के देख
मुझे ज़बाँ से नहीं रूह से पुकार के देख
मेरी ज़मीन पे चल तेज़ तेज़ क़दमों से
फिर उस के बा'द तू जल्वे मिरे ग़ुबार के देख
ये अश्क दिल पे गिरें तो बहुत चमकता है
कभी ये आइना तेज़ाब से निखार के देख
न पूछ मुझ से तिरे क़ुर्ब का नशा क्या है
तू अपनी आँख में डोरे मिरे ख़ुमार के देख
ज़रा तुझे भी तो एहसास-ए-हिज्र हो जानाँ
बस एक रात मेरे हाल में गुज़ार के देख
अभी तो सिर्फ़ कमाल-ए-ग़ुरूर देखा है
तुझे क़सम है तमाशे भी इंकिसार के देख
-Mahshar afridi b- महशर आफ़रीदी
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