अजनबी ख्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ - ajanabee khvaahishen seene mein daba bhee na sakoon - Dr. Rahat “ Indauri” - डॉ० राहत “इन्दौरी”

अजनबी ख्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ
ऐसे जिद्दी हैं परिंदे के उड़ा भी न सकूँ

फूँक डालूँगा किसी रोज ये दिल की दुनिया
ये तेरा खत तो नहीं है कि जला भी न सकूँ

मेरी गैरत भी कोई शय है कि महफ़िल में मुझे
उसने इस तरह बुलाया है कि जा भी न सकूँ

इक न इक रोज कहीं ढ़ूँढ़ ही लूँगा तुझको
ठोकरें ज़हर नहीं हैं कि मैं खा भी न सकूँ

फल तो सब मेरे दरख्तों के पके हैं लेकिन
इतनी कमजोर हैं शाखें कि हिला भी न सकूँ

Dr. Rahat “ Indauri” - डॉ०  राहत “इन्दौरी”   

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