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Thursday, February 25, 2021

गुलज़ार साहब का जीवन परिचय | Biography of Gulzar | प्रसिद्ध शायर गुलज़ार साहब

February 25, 2021 0 Comments

 गुलज़ार साहब का जीवन परिचय  |  Biography of Gulzar


गुलज़ार साहब का वास्तविक नाम सम्पूर्ण सिंह कालरा है,

 जन्म 18 अगस्त, 1934 को हुआ। हिन्दी फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार के अलावा आप एक कवि, पटकथा लेखक, फ़िल्म निर्देशक तथा नाटककार और प्रसिद्ध शायर भी हैं।


आप के पिताजी का नाम मख्खन सिंह कालरा, और माता जी का नाम सुजन कौर है, आप की पत्नी का नाम श्रीमती राखी गुलज़ार है, आपका विवाह १९७३ में हुआ था | आपके पुत्री का नाम मेघना गुलज़ार है, और आपके पोता और नाती का नाम समय, संधू है |


आपको २००२ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से तथा २००४ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है |

आपके गीत इतने लोकप्रिय है के लोग सुन - सुन कर जवान होते है, तुझसे नाराज नहीं ज़िन्दगी हैरान हूँ मैं, मेरा आज तक का सबसे खुबसूरत गीत रहा है | 

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Sunday, February 21, 2021

हरिशंकर परसाई | Harishankar Parsai Biography in Hindi

February 21, 2021 0 Comments

 हरिशंकर परसाई | Harishankar Parsai Biography in Hindi

हरिशंकर परसाई हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और व्यंगकार कहे जाते थे ,

हरिशंकर परसाई का जन्म जन्म 22 अगस्त 1924 को इटारसी के पास, 'जमानी गाव ' होसिंगाबाद  मध्य प्रदेश में हुआ।

हरिशंकर परसाई हिंदी के पहले रचनाकार है जिन्होंने व्यंग को विधा का दर्जा दिलाया, और इसे मनोरंजक बनाकर समाज में एक अलग तरीके से प्रस्तुत किया !

परसाई जी की जाति 

यह मुख्यत: भारत के मध्य प्रदेश राज्य में पाया जाता, ब्राह्मण जाति और कदिमानिकपुर झिन्झोतिया ब्राह्मण समाज से इनका संबंद था |


कहानी-संग्रह

1.हंसते हैं-रोते हैं, 

2. जैसे उसके दिन फिरे, 

3. भोलाराम का जीव |

उपन्यास -

रानी नागफनी की कहानी,

ज्वाला और जल,

तट की खोज।

संस्मरण  -

तिरछी रेखाएं 

निबंध संग्रह - 

तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेईमानी की परत, पगडंडियों का जमाना, सदाचार का ताबीज, वैष्णव की फिसलन, विकलांग श्रद्धा का दौर, माटी कहे कुम्हार से, शिकायत मुझे भी है, और अन्त में, हम इक उम्र से वाकिफ हैं ।

आप 'वसुधा' पत्रिका के संस्थापक सम्पादक रहे। सागर विश्व-विद्यालय में मुक्तिबोध सृजन-पीठ के निदेशक भी रहे। 

विभिन्न सम्मान मिले जिनमें साहित्य अकादमी का सम्मान, मध्य प्रदेश शासन का शिक्षा-सम्मान, जबलपुर विश्वविद्यालय के द्वारा डी.लिट् की मानद उपाधि सम्मिलित हैं।

निधन: 

10 अगस्त 1995 को आपका निधन  जबलपुर  में हो गया।  

शिक्षा:

हरिशंकर परसाई जी ने अपनी  शिक्षा राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय से पूरा किया |

इनाम:

इन्होने अपनी रचना के दम पर साहित्य अकादमी पुरष्कार हासिल किया |

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Thursday, February 11, 2021

निदा फाज़ली का जीवन परिचय | Nida Fazali Biography in Hindi

February 11, 2021 0 Comments

 निदा फाज़ली का जीवन परिचय | Nida Fazali Biography in Hindi


आपका पूरा नाम मुक्तदा हसन निदा फ़ाज़ली है,  जन्म 12 अक्टूबर 1938 को दिल्ली में हुआ। 

आपके पिताजी मुर्तजा हसन और माताजी जमील फातिमा के आप तीसरी संतान है |

'निदा' स्वर को कहा जाता है और  फ़ाज़िला क़श्मीर के एक इलाके का नाम है जहाँ से आप के पूर्वज दिल्ली रहने लगे थे , आप को कश्मीर बहुत अच्छा लगता था, कश्मीर से जुडाव बना रहे इसलिए आपने अपने नाम में फाजली शीर्षक को जोड़ दिए | 


आपका बचपन ग्वालियर में गुजरा | १९५८ में ग्वालियर कॉलेज से आपने स्नातकोत्तर की शिक्षा पूरी की | 


बहुत पुरानी कहावत है कि हर कामयाब पुरुष के पीछे महिला का हाँथ होता है, यह बात कही न कहीं आप के जीवन पर भी असर करती है,

आप के पिताजी भी शायर थे, और जब आप स्कूल के दिनों में थे आपके सामने एक लड़की बैठती थी, आप उससे मन ही मन बहुत प्यार करते थे, लेकिन ये आपकी एकतरफा मुहोब्बत थी, उस समय आप सिर्फ उसके लिए लिखा करते थे,

बाद में उसका एक रोड एक्सीडेंट में मौत हो जाने के कारण, आप का प्यार दर्द बनकर शायरी में उभरने लगा, (आप उस इन्सान को भूल सकते हो जिससे आपको नफ़रत हो जाये, लेकिन जो आपके दिल में है उससे आप दूर रहकर टूट जावोगे), उस समय क्योकि आपका बाल्यकाल था तो इतना अच्छा आप नहीं लिख पाते थे |

 इसलिए अपने सूरदास,कबीर, तुलसीदास और बाबा फ़रीद. जैसे बड़े रचनाकारों का गहनता से अध्ययन किया और अपने छमता से आधार पर अपने इतने सरल शब्दों में गीत लिखे जो विश्व प्रसिध्द हो गए, मेरा ये दावा है इस पोस्ट को पढ़ने वाला हर शख्स कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता और तू इस तरह से जिंदगी में सामिल है जैसे गीत जरुर गाये होंगे | 


फिल्म ‘आहिस्ता-आहिस्ता' के लिए निदा फ़ाज़ली ने 'कभी किसी को मुक्कमल जहां नहीं मिलता गीत लिखा। आशा भोसले और भूपिंदर सिंह की आवाज़ में, इतना सराहा गया की  ग़ज़ल प्रेमियों की जुबान पर आज भी गुजती रहती है |


प्रसिद्ध गजल गायक जगजीत सिंह ने आपके कई गीत गाए,  फिल्म सरफरोश का गीत 'होश वालो को खबर क्या बेखुदी क्या चीज है' यह ग़ज़ल इतना फेमस हुआ की आज भी लोगों को ग़ज़ल गुनगुनाते हुए सुन सकते है  ।

‘खोया हुआ सा कुछ' आपकी शायरी का एक  महत्वपूर्ण संग्रह है। आपकी इस कृति को साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया था। आपके इस ग़ज़ल संग्रह में आपके दोहे भी बहुत कुछ सिखाते है | 


हिंदी-उर्दू काव्य प्रेमियों के बीच समान रूप से लोकप्रिय और सम्मानित 'निदा फ़ाज़ली' आपकी रचनाये पूरी दुनिया में हमेशा अमर रहेंगी |


8 फरवरी 2016 को मुंबई में 83 वर्ष की आयु में आप इस दुनिया से विदा ले लिए |


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Tuesday, February 9, 2021

राहत इंदौरी का जीवन परिचय और रचनाएं | Rahat Indori Biography and Poetry in Hindi

February 09, 2021 0 Comments

 राहत इंदौरी का जीवन परिचय और रचनाएं | Rahat Indori Biography and Poetry in Hindi


आपका  का जन्म इंदौर में 1 जनवरी 1950 में हुआ था। आप के पिता कपड़ा मिल के कर्मचारी थे।  पिताजी का नाम रफ्तुल्लाह कुरैशी और माताजी का नाम मकबूल उन निशा बेगम था।

आप  चौथी संतान थे। आपकी  प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में हुई। आपने इस्लामिया करीमिया कॉलेज इंदौर से 1973 में स्नातक तक की शिक्षा ली और 1975 में बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल से उर्दू साहित्य में एम.ए किया। उसके बाद 1985 में मध्य प्रदेश के भोज मुक्त विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।

उर्दू मुख्य मुशायरा नामक आपकी  थीसिस के लिए आपको  सम्मानित भी किया गया था।


आप  का वास्तविक नाम राहत कुरैशी था। आपने शुरुआती दौर में इंद्रकुमार कॉलेज, इंदौर में उर्दू साहित्य का अध्यापन कार्य शुरू कर दिया। आप एक अच्छे गुरू थे। 


इसी बीच में आप मुशायरों में बहुत व्यस्त हो गए।  पूरे भारत और विदेशों से निमंत्रण आने लगे।  उर्दू साहित्य की दुनिया में आपका एक अहम स्थान है।  आप पढ़ाई के साथ-साथ आप एक अच्छे खिलाडी थे।  स्कूल और कॉलेज के दिनों में फुटबॉल और हॉकी टीम के कप्तान भी रहे।


19 वर्ष की आयु में आप पहली  बार मुशायरा में सामिल होकर लोगों के दिलों में अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे, उसके बाद आपने पीछे मुड़ कर नहीं देखा, लोग आपके शायरी के दीवाने इस कदर हुए की सब के जुबान पर आपके शायरी के शब्द सुनने को मिल जाता है, आपका एक फेमस शायरी है  " बुलाती है मगर जाने का नहीं " वायरल हो गया था  इसके बाद तो पूरा विश्व आपके दीवानी हो गयी ।


परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण आपका बचपन काफी मुश्किलों भरा रहा। राहत को अपने ही शहर में एक साइन-चित्रकार के रूप में 10 वर्ष से भी कम आयु में काम करना शुरू कर दिया था। आप अपनी प्रतिभा से जल्द ही एक फेमस साइन चित्रकार के रूप में लोगों के दिलों में जगह बना लिए थे | आपकी साइन बोर्ड आज भी देखने को मिल जाते है |


आप की हिंदी पुस्तकें 


कलंदर, राहत साहब, रुत राहत इन्दौरी, दो कदम और राही, मेरे बाद, धूप बहुत है, मौजूद, नाराज़ 


निधन


10 अगस्त २०२० को  कोरोना से संक्रमित होने पर आपको इंदौर के अरबिंदो अस्तपाल में भर्ती करवाया गया था जहां दिल का दौरा पड़ने से 11 अगस्त 2020 को आपने इस दुनिया से रुखसत हो गए ।

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Saturday, February 6, 2021

राहुल सांकृत्यायन का जीवन परिचय | Rahul Sankrityayan Biography in Hindi

February 06, 2021 0 Comments

 राहुल सांकृत्यायन का जीवन परिचय | Rahul Sankrityayan Biography in Hindi

आप का जन्म आजमगढ़ जिले के पन्दहा गाँव में ९ अप्रेल १८९३ को हुआ था, आपको बचपन में केदारनाथ पाण्डेय कहकर पुकारते थे, आपके माता का नाम कुलवंती और पिता का नाम गोवर्धन पाण्डेय था, आपके साले का नाम दीपचन्द पाठक था जो अपनी बहन के साथ रहते थे | 

बाल्याकाल में ही आपकी माता जी स्वर्ग चली गयी, जिससे आपका किशोर अवस्था नानी और नाना राम शरण पाठक  के घर पर बीता |

१८९८ में आपको मदरसे से दाखिला दिलाया गया|

आपका विवाह बचपन में ही करा दिया गया था, जिससे नाराज होकर आपने घर छोड़ कर भाग गए और एक मठ में साधु बन गए , आप आत्मज्ञान प्राप्त करने को लेकर बहुत लालयित थे, जिसके बाद आपने पुरे भारत देश का का भ्रमण  किया ,


आप जहा भी जाते वहां की संकृति और भाषा को अपना बना लेते थे, कहा जाता है आपको ३६ भाषावो का ज्ञान था, फिर भी आपने अधिकतर रचनाये अपनी मातृभाषा हिंदी में ही लिखी |


आपने आत्मज्ञान की खोज में कई बार धर्म परिवर्तन किया, आपके ज्ञान भंडार और तर्कशक्ति से काशी के पंडित इतने प्रभावित हुए, जिससे उन्होंने आपको महापंडित की उपाधि दी | 


रूस में आपने संस्कृत अध्यापक की नौकरी की | और वहा एक एलेना नाम की महिला से प्यार हो जाता है और आपने वहां दूसरी शादी कर ली, एलेना से आपको एक पुत्र हुआ जिसका नाम  इगोर राहुल विच रखा,

आपने उपन्यास, निबंध, कहानी, आत्मकथा, संस्मरण व जीवनी आदि विधावों में साहित्यिक सृजन किया |

आपके सम्मान में पटना में राहुल संस्कृत्यायन साहित्य संस्थान और आपने से जुडी वस्तुवो के  की स्थापना की गयी है, 


आपको १९५८ में साहित्य अकादमी पुरस्कार और १९६३ में भारत सरकार ने आपको पद्मभूषण से सम्मानित किया| 

आपके रचित कहानिया: सतमी के बच्चे, कनैला की कथा, वोल्गा से गंगा, बहुरंगी मधुपुरी|

आपके उपन्यास: जीने के लिए, बईसबी सदी, सप्तसिंधु, सिंह सेनापति, भागो नहीं दुनिया को बदलो, जय योधेय, मधुर स्वप्न, राजस्थान निवास, दिवोदास, विस्मृत यात्री|

आपने बहुत से यात्रा साहित्य भी लिखा जो निम्न है: लंका, जापान,ईरान , किन्नर देश की ओर, रस में पच्चीस माह जैसे बहुत से पुस्तक और जीवनिया लिखी |


मधुमेह से हार कर आप १४ अप्रेल १९६३ को पश्चिम बंगाल (जिसको दार्जिलिंग भी कहा करते थे) आपने हमेशा के लिए विदा ले लिए| 

मुक्त ज्ञानकोष, वेब स्रोतों और उन सभी पाठ्य पुस्तकों का मैं धन्यवाद देना चाहता हूँ, जहाँ से जानकारी प्राप्त कर इस लेख को लिखने में सहायता हुई है |


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Thursday, February 4, 2021

Aap ko yunhi to nahi chahta hua mein | Ambika Rahee

February 04, 2021 0 Comments


 Aap ko yunhi to nahi chahta hua mein, 

Dil se punchho jindagi manta hun mein, 

 

Ek najar dekha Lun, din bhar tarsata hun, 

Sans ban kar aate ho, khuda manta hun main. 

 

Nahi kah pata kuchh bhi, aap ke samne, 

Kareeb aapke, man shunya pata hun mein. 

 

Ab ke alam kuhh aisa ho raha hai Rahee!, 

Tufanon ke beech, patwar manta hun mein, 

 

Laga lo gale, ke thahar jaun bahon mein, 

Jindagi ki akhiri talash manta hun mein. 


-Ambika Rahee



In Hindi




आप को यूँही तो नहीं, चाहता हूँ मैं,

दिल से पूंछो, जिंदगी मानता हूँ मैं,


एक नजर देख लूँ, दिन भर तरसता हूँ,

साँस बन कर आते हो, ख़ुदा मानता हूँ मैं,


नहीं कह पाता कुछ भी, आपके सामने,

क़रीब आपके, मन शून्य पाता हूँ मैं,


अब के आलम, कुछ ऐसा हो रहा है राही !,

तूफानों के बीच, पतवार मानता हूँ मैं,


लगा लो गले, के ठहर जाऊँ बाँहों में,

जिंदगी की आखिरी, तलाश मानता हूँ मैं |


- अम्बिका राही 


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